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नरा॒शंसः॑ सुषूदती॒मं य॒ज्ञमदा॑भ्यः। क॒विर्हि मधु॑हस्त्यः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

narāśaṁsaḥ suṣūdatīmaṁ yajñam adābhyaḥ | kavir hi madhuhastyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नरा॒शंसः॑। सु॒सू॒द॒ति॒। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। अदा॑भ्यः। क॒विः। हि। मधु॑ऽहस्त्यः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:5» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अदाभ्यः) निष्कपट (मधुहस्त्यः) मधुर हस्तवालों में श्रेष्ठ (नराशंसः) मनुष्यों से प्रशंसा किया गया (कविः) बुद्धिमान् जन (हि) जिस कारण (इमम्) इस (यज्ञम्) विद्या के प्रचारनामक व्यवहार को (सुषूदति) अमृत के सदृश टपकाता है, इस कारण वह पूर्ण सुखयुक्त होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् ! जैसे गौ सब के सुख के लिये दुग्ध देती है, वैसे सब के सुख के लिये सत्यविद्या के उपदेशों को निरन्तर वर्षाइये ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽदाभ्यो मधुहस्त्यो नराशंसः कविर्जनो हीमं यज्ञं सुषूदत्यतः सोऽलंसुखो जायते ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नराशंसः) यो नरैः प्रशस्यते (सुषूदति) अमृतं क्षरति (इमम्) (यज्ञम्) विद्याप्रचाराख्यं व्यवहारम् (अदाभ्यः) निष्कपटः (कविः) मेधावी (हि) यतः (मधुहस्त्यः) मधुहस्तेषु साधुः ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! यथा गौः सर्वेषां सुखाय दुग्धं क्षरति तथा सर्वेषां सुखाय सत्यविद्योपदेशान् सततं वर्षय ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना ! गाय जशी सर्वांच्या सुखासाठी दूध देते तसे सर्वांच्या सुखासाठी सत्यविद्येचा निरंतर उपदेश कर. ॥ २ ॥